सुब्रमण्यम स्वामी से का जन्म 15 September 1939 को मिलापोरे (चेन्नई) में हुआ था। सुब्रमणियम एक अर्थशास्त्री, सांख्यिकीविद और भारतीय जनता पार्टी के नेता है जो राज्य सभा से MP है। इस लेख में आपको बताएँगे सुब्रमनियन स्वामी से जुड़े अनसुने रोचक तथ्य।
पिता थे काफी पढ़े लिखे
स्वामी के पिता सीताराम सुब्रमण्यम जाने माने गणितज्ञ थे और सुब्रमण्यम स्वामी भी पिता की तरह ही गणितज्ञ बनना चाहते थे।
उन्होंने हिन्दू कॉलेज से गणित में स्नातक डिग्री प्राप्त की और दिल्ली विश्वविद्यालय में तीसरे स्थान पर रहे थे।
यह कहना गलत नहीं होगा कि स्वामी के सितारे शुरू से ही बुलन्द थे। वह सिर्फ 6 महीने के थे जब उनके पिता ने अपनी नौकरी बदली
और चेन्नई (तब मद्रास) से दिल्ली आ गए। दिल्ली, जिसे सत्ता का गढ़ माना जाता है। पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आई. एस. आई),
कोलकाता में दाखिला लिया। स्वामी आगे की पढ़ाई पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए दिल्ली से कोलकाता (तब कलकत्ता)
सुब्रमण्यम स्वामी ने बीए में प्रतिष्ठित हिंदू कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और दिल्ली विश्वविद्यालय में तीसरा स्थान अर्जित किया।
सपने सी नौकरी को किया इंकार
वह जब एसोसिएट प्रोफेसर थे तो उन्हें अमर्त्य सेन द्वारा दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में चीनी अध्ययन पर एक प्राध्यापक के पद के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जब वो दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स पहुचे तो उनकी नियुक्ति को उनके भारत के लिए परमाणु क्षमता के समर्थन और उसके बाजार के अनुकूल दृष्टिकोण के कारण रद्द कर दिया गया।
पहले अमेरिकन नोबेल मेमोरियल पुरस्कार विजेता के साथ कर चुके है काम
स्वामी ने पहले अमेरिकन नोबेल मेमोरियल पुरस्कार विजेता के साथ संयुक्त लेखक के रूप में एक थ्योरी प्रस्तुत की। उन्होंने पॉल सैमुअल्सन के साथ संयुक्त लेखक के रूप में इण्डैक्स नम्बर थ्योरी का अनुपूरक अध्ययन प्रस्तुत किया। यह अध्ययन 1974 में प्रकाशित हुआ।
चीनी भाषा जानते है स्वामी
1975 में स्वामी ने एक किताब लिखी जिसका शीर्षक था “इकनोमिक ग्रोथ इन चाइना एंड इंडिया,1952-1970: ए कम्पेरेटिव अप्रैज़ल”
स्वामी ने सिर्फ 3 महीने में चीनी भाषा सीखी (किसी ने उन्हें एक साल में चीनी भाषा को सीखने की चुनौती दी थी )। स्वामी को आज भी चीनी अर्थव्यवस्था और भारत और चीन के तुलनात्मक विश्लेषण के प्राधिकारी का दर्जा प्राप्त है।
IIT के छात्रों को पढ़ा चुके है सुब्रमनियन स्वामी
स्वामी ने आईआईटी के छात्रों को अर्थशास्त्र पढ़ाया। वह अक्सर हॉस्टल में छात्रों से मिलने और राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय विचारों पर उनसे चर्चा करने के लिए जाते थे। अब तक स्वामी ने अपने नाम को अंपने दम पर बनाए रखा है।
उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को पंचवर्षीय योजनाओं से दूर रहना चाहिए और बाह्य सहायता पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उनके अनुसार 10% विकास दर हासिल करना संभव था।
हिन्दुओ के लिए काफी कुछ कर चुके है स्वामी
सुब्रमण्यम स्वामी के अथक प्रयास का ही परिणाम है कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए भारत और चीन की सरकारों के बीच एक समझौता हो सका है। हिन्दू तीर्थयात्रियों के लिए स्वामी ने गंभीर प्रयास किए हैं।
इसके लिए स्वामी ने 1981 में ही अभियान छेड़ा था। उन्होंने उस साल अप्रैल महीने में चीन के शीर्ष नेता देंग जियाओपिंग से मुलाकात की थी।
निश्पक्ष नेता है स्वामी
हर नेता भले ही वह कांग्रेस का हो, भाजपा का होगा या आम आदमी पार्टी का हो, अगर पार्टी कोई गलत काम करे तो फिर भी उसके बचाव में ही भाषण देंगे। परन्तु सुब्रमनियन स्वामी बिलकुल निष्पक्ष है। अगर भारतीय जनता पार्टी कुछ अच्छा कार्य करती है तो तारीफ और कुछ गलत करती है तो खुदकी पार्टी के विरुद भी बोल देते है स्वामी।
बेरोज़गारी की वजह से जा रहे थे अमेरिका
यह स्वामी की बेबाकी थी कि उन्हें आईआईटी की नौकरी से हाथ धोना पड़ा। उन्हें दिसंबर 1972 में अनौपचारिक रूप से बर्खास्त कर दिया गया। 1973 में स्वामी ने गलत तरीके से बर्खास्तगी के लिए प्रतिष्ठित संस्थान पर मुकदमा ठोक दिया। उन्होंने 1991 में यह मुकदमा जीता और अपनी बात को साबित करने के लिए वह इस्तीफा देने से पहले संस्थान में केवल एक दिन के लिए ही शामिल हुए।
अपनी पत्नी, छोटी बेटी और कोई नौकरी न होने की वजह से स्वामी ने अमेरिका वापस जाने का विचार कर लिया था। यह कहना गलत नहीं होगा कि तभी भाग्य ने हस्तक्षेप कर राजनीति में उनका आगमन कराया। जनसंघ के वरिष्ठ नेता नानाजी देशमुख के एक फोन कॉल से स्वामी का जीवन बदल गया। उन्हें राज्यसभा में पार्टी का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था। 1974 में वह संसद के लिए निर्वाचित हुए।
आपातकाल में थे निडर
विभाजन के बाद जो आजादी और सकल मानव त्रासदी सामने आई उसे स्वामी ने करीब से देखा था। वह उन कर्कश दिनों के गवाह थे जब विभाजन के बाद लोग दैनिक संघर्षों से जूझते दिखे।
आपातकाल की स्थिति (1975-77) ने उन्हें एक राजनीतिक हीरो के रूप में खड़ा किया । स्वामी गिरफ्तारी वारंट को नकारते हुए पूरे 19 महीने की अवधि के लिए टालते रहे।
आपातकाल के दौरान अमेरिका से भारत वापस आना, संसद के सुरक्षा घेरे को तोड़ना, 10 अगस्त 1976 में लोकसभा सत्र में भाग लेना और देश से पलायन कर अमेरिका वापस लौटना उनके सबसे साहसी कृत्यों में गिने जाते हैं।










nice job
ReplyDeletefantastic
ReplyDeletethanks
Delete